
पटना ब्यूरो, पटना
दिल्ली चुनाव नतीजों का असर बिहार में सीट बंटवारे पर भी पड़ सकता है. बीजेपी की लगातार तीन जीत के बाद पार्टी एनडीए में अधिक सीटों की मांग कर सकती है. 2020 के चुनाव में जेडीयू को केवल 43 पर जीत मिली थी जबकि बीजेपी ने 74 सीटें जीती थीं. हालांकि जेडीयू का तर्क है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उसने बीजेपी के बराबर 12 सीटें जीती थीं और उसकी स्ट्राइक रेट बेहतर रही थी.
महागठबंधन में कांग्रेस की स्थिति कमजोर होती दिख रही है. 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन सिर्फ 19 पर जीत पाई थी. वहीं, आरजेडी ने 75 सीटें जीती थीं और सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी. ऐसे में आरजेडी कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के मूड में नहीं दिख रही है.
मोदी सरकार के तीसरे टर्म में जब-जब पटना में सियासी भूकंप आता है तो उनका केंद्र बिंदु दिल्ली जरूर होता है. इन सबके बीच अब जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी बड़ी जीत हासिल कर चुकी है तो राजनीतिक फोकस बिहार की ओर मुड़ चुका है. यह संयोग कहें या इंतजार कहें इस साल के अंत में चुनाव होने की संभावना है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पांचवीं बार सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे हैं जबकि आरजेडी नेता तेजस्वी यादव दो दशकों की सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की रणनीति बना रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच बीजेपी किस मौके की फिराक में है. इसे समझने की जरूरत है.
असल में बिहार में विधानसभा चुनाव इस साल नवंबर में संभावित हैं. बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के मुकाबले आरजेडी के नेतृत्व वाला महागठबंधन कमजोर नजर आ रहा है जिसमें कांग्रेस और वामपंथी दल भी शामिल हैं. बीजेपी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में लगातार मिली जीत से उत्साहित होकर बिहार में 243 में से 225 सीटें जीतने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है.


राहुल लगातार पहुंच रहे.. लेकिन बीजेपी की प्लानिंग भी सीक्रेट है..
कांग्रेस भी बिहार पर ध्यान केंद्रित कर रही है. राहुल गांधी ने दिल्ली चुनाव के दौरान 5 फरवरी को पटना का दौरा किया जो 18 दिनों में उनकी दूसरी यात्रा थी. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 24 फरवरी को बिहार दौरे पर आ सकते हैं. वे इस दौरान कुछ विकास परियोजनाओं का उद्घाटन करेंगे और किसानों की एक सभा को संबोधित करेंगे. लेकिन बीजेपी की निगाहें किस पर है यह भी जानना जरूरी है.
चुनावी तैयारियों में जुटे नीतीश और तेजस्वी
नीतीश कुमार पिछले साल दिसंबर से ही ‘प्रगति यात्रा’ पर हैं, जिसके तहत वे पूरे राज्य का दौरा कर रहे हैं. इसके अलावा ‘नारी शक्ति रथ यात्रा’, ‘कर्पूरी रथ यात्रा’ और ‘अंबेडकर रथ यात्रा’ जैसे अभियानों के जरिए वे विभिन्न समुदायों को साधने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं तेजस्वी यादव कार्यकर्ता दर्शन सह संवाद कार्यक्रम के तहत विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और नए वादे कर रहे हैं. आरजेडी ने गरीब परिवारों की महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने और 200 यूनिट मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं का ऐलान किया है.


असली चुनौती नीतीश के लिए… बीजेपी का बढ़ता प्रभाव
एक्सपर्ट्स का भले ही मानना है कि नीतीश कुमार ने अब तक सत्ता विरोधी लहर को सफलतापूर्वक मात दी है लेकिन बार-बार गठबंधन बदलने के कारण उनकी साख पर सवाल उठ रहे हैं. हालांकि बीजेपी की सफलताओं और मोदी सरकार के केंद्रीय बजट में बिहार को दी गई सौगातों से एनडीए को बढ़त मिलने की उम्मीद है. इस बजट में मखाना उद्योग को बढ़ावा देने और कोसी नहर परियोजना की घोषणा की गई है जो नीतीश के विकास मॉडल को मजबूती दे सकता है. बीजेपी के अगले कदम पर सबकी निगाहें हैं. क्योंकि वह भले ही अपने पत्ते नहीं खोल रही लेकिन सबको पता है कि अपने सीएम को बनाने की इच्छा उसकी बहुत पुरानी है.
पीके.. नए राजनीतिक खिलाड़ी, आरजेडी के लिए चुनौती
बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर की पार्टी ‘जन सुराज’ भी तेजी से उभर रही है. हाल ही में हुए उपचुनाव में पार्टी ने 10% वोट हासिल किए जिससे आरजेडी को नुकसान हुआ. खासतौर पर इमामगंज और बेलागंज जैसी सीटों पर आरजेडी की हार में जन सुराज की भूमिका महत्वपूर्ण रही. किशोर की बिहार में लंबी पदयात्रा और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आंदोलन से युवाओं के बीच उनकी पकड़ मजबूत होती दिख रही है.
इन सभी समीकरणों के बीच नीतीश कुमार ने बुधवार को बीजेपी के साथ अपने पुराने रिश्तों को मजबूत बताते हुए कहा कि दोनों दल मिलकर आगे भी काम करेंगे. साथ ही उन्होंने परोक्ष रूप से आरजेडी पर हमला करते हुए कहा कि 2005 से पहले की सरकार ने बिहार के विकास के लिए कुछ नहीं किया.
