
पटना
Prohibition: . पटना हाइकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि शराबबंदी कानून के तहत केवल ब्रेथ एनालाइजर रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गयी प्राथमिकी अवैध मानी जायेगी. एनालाइजर मशीन की रिपोर्ट किसी व्यक्ति के मद्यपान करने का कोई ठोस प्रमाण नहीं देती. इसलिए केवल सांस की दुर्गंध जांच कर दर्ज हुई प्राथमिकी शराबबंदी कानून में अमान्य होगी. न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकलपीठ ने नरेंद्र कुमार राम की आपराधिक रिट याचिका को मंजूर करते हुए उक्त आदेश दिया है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ किशनगंज एक्साइज थाने में पिछले वर्ष दर्ज हुई प्राथमिकी (कांड संख्या 559/2024 ) को इसी आधार पर निरस्त कर दिया.


इस आधार पर जांच होने पर ही होगी मान्यता
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकलपीठ ने कहा कि ब्रेथ एनालाइजर मशीन की रिपोर्ट का समर्थन तब तक नहीं किया जा सकता जबतक आरोपी के असामान्य व्यवहार जैसे लड़खड़ाती जबान या चढ़ी हुई आंखे जैसे हालात किसी प्राथमिकी में दर्ज न हो. उन्होंने कहा कि आरोपित के खून और पेशाब जांच की रिपोर्ट जो इस बात की पुष्टि करे कि आरोपी के शरीर में अल्कोहल की मात्रा है, तभी प्राथमिकी शराब बंदी कानून के तहत मान्य और वैध होगी. कोर्ट ने इस मामले में एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कानून में सांस की दुर्गंध को पेट में शराब रहने का कोई ठोस प्रमाण नहीं माना जा सकता. जब तक उसके खून पेशाब या उसके असामान्य व्यवहार को यह रिपोर्ट समर्थन न करती हो.
याचिकाकर्ता होमियोपैथी दवाओं का कर रहा था सेवन
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता शिवेश सिन्हा को सुनने के बाद कोर्ट को बताया गया कि याचिकाकर्ता पेट के संक्रमण का इलाज होमियोपैथी दवाओं से करीब एक पखवाड़े से करा रहा था. ब्रेथ एनालाइजर से होमियोपैथी दवाओं में अल्कोहल की मात्राओं को संवेदन कर पेट में शराब होने की बात कही गयी. एक्साइज अधिकारियों ने आरोपी के खून पेशाब जांच कराए बगैर ही प्राथमिकी दर्ज कर दी. जिसमें याचिकाकर्ता के असामान्य व्यवहार या उसकी चढ़ी हुई आंखें वगैरह का जिक्र भी नहीं है. ऐसे में आरोपित को शराबी मानना अनुचित है.

