

ओम प्रकाश अश्क वरिष्ठ पत्रकार व समीक्षक
नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू के प्रति फिलवक्त सर्वाधिक चिंता बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और आरजेडी के सीएम फेस तेजस्वी यादव को हो रही है. वे कहते हैं कि नीतीश कुमार भाजपा के चंगुल में फंस गए हैं. आरजेडी के दूसरे नेता भी मानते हैं कि भाजपा ने जेडीयू को खत्म करने का प्लान बना लिया है. तेजस्वी पहले से ही नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर की तरह सवाल उठाते रहे हैं. दोनों के हिसाब से मुख्यमंत्री सीएम के रूप में बिहार की सत्ता संभालने में नाकाम हैं. तेजस्वी जेडीयू को लेकर इतने चिंतित हैं कि उन्होंने नीतीश कुमार के बेटे निशांत को अपना भाई तक बता दिया. उन्हें घर बसाने की सलाह दी. तेजस्वी के बड़े भाई तेज प्रताप यादव खुला निमंत्रण दे रहे हैं कि निशांत को आरजेडी के साथ अपना राजनीतिक करियर शुरू करना चाहिए. लालू प्रसाद यादव तो पहले से ही नीतीश को आरजेडी के साथ आने के लिए अपना दरवाजा खालने की बात कह चुके हैं.
नीतीश ही उबारते रहे हैं आरजेडी को
नीतीश कुमार, उनके बेटे निशांत और जेडीयू के प्रति अचानक आरजेडी नेताओं के उमड़े प्रेम के पीछे की वजह क्या हो सकती है. सीधा जवाब यही होगा कि आरजेडी नेता मान कर चल रहे हैं कि नीतीश भाजपा की चालों से ऊब चुके हैं. उन्हें उकसाया गया. तो वे लाख इनकार के बावजूद पाला बदल के इतिहास को दोहरा सकते हैं. आरजेडी को यकीन है कि नीतीश कुमार के साथ आने से उसकी कामयाबी की राह आसान हो जाएगी. वर्ष 2005 के बाद 2015 ही एक मौका था, जब नीतीश कुमार के साथ रहने पर महागठबंधन ने आसानी से सरकार बना ली थी. तब महागठबंधन के बैनर तले नीतीश के जेडीयू ने विधानसभा की 71 और आरजेडी ने 80 सीटें जीत ली थीं. उसके बाद 2022 में नीतीश ने भाजपा को छोड़ आरजेडी के साथ जब हाथ मिलाया तो आरजेडी नेताओं को सत्ता का सुख मिल गया था.
नीतीश के प्रति आरजेडी की हमदर्दी
तेजस्वी, तेज प्रताप, मीसा भारती और लालू यादव के साथ आरजेडी के नेता भी आजमा कर देख चुके हैं कि नीतीश कुमार जिसके साथ जाते हैं, उसकी सरकार बननी तय होती है. यही वजह है कि बिहार की राजनीति में खेला होने की सबसे अधिक चर्चा आरजेडी के ही नेता करते रहे हैं. नीतीश कुमार बार-बार सफाई दे रहे हैं कि वे जहां हैं, वहीं रहेंगे. अब कही और जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इसके बावजूद आरजेडी लार टपकाता रहा है. आरजेडी नेताओं को यह भी लगता है कि नीतीश कुमार नहीं पसीजे तो कोई बात नहीं. वैसे भी भाजपा उन्हें ठिकाने लगाने की रणनीति को आहिस्ता-आहिस्ता अमली जामा पहनाने लगी है. ऐसे में आरजेडी नेताओं को उम्मीद है कि नीतीश के बेटे निशांत राजनीति में आएं तो उससे शायद कोई करामात हो जाए. इसीलिए जेडीयू या एनडीए के नेताओं से कहीं अधिक बेचैनी निशांत के राजनीति में आने को लेकर आरजेडी में है.

भाजपा के कब्जे में आ गया जेडीयू!
भाजपा ने नीतीश कुमार को 2020 में संख्या बल कम होने के बावजूद सीएम बनाया. 2024 में भी साथ आने पर भाजपा ने नीतीश पर ही भरोसा जताया. लोकसभा चुनाव तक नीतीश कुमार को ही आगे कर भाजपा चल रही थी. पर, हाल के दिनों में, खासकर महाराष्ट्र चुनाव के बाद यह लगने लगा है कि भाजपा नीतीश कुमार पर भारी पड़ रही है. हालांकि उनके कामकाज में भाजपा ने कभी कोई दखल नहीं दी. नीतीश ने जैसा चाहा, वैसा किया. बिहार के लए नीतीश ने केंद्र से बेहतर बजटीय प्रावधान की उम्मीद की. केंद्र सरकार ने उसे भी पूरा किया. हां, एक बात तो साफ दिख रही है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों में अपना सीएम बनाने के बाद भाजपा का मनोबल जरूर बढ़ा है. इस साल चूंकि बिहार में विधानसभा का चुनाव है, इसलिए माना जा रहा है कि भाजपा तीन राज्यों में अपनी जीत का गुरूर जरूर दिखाएगी. इसकी हल्की झलक मंत्रिमंडल विस्तार में भी दिखी. सात मंत्रियों के रिक्त स्थान जब भरे गए तो सभी पद भाजपा की झोली में आ गए. जेडीयू के दो मंत्री बनने की बात विस्तार की चर्चा में शामिल थी. पर, बने सभी भाजपा कोटे से मंत्री. इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि भाजपा ने आहिस्ता-आहिस्ता नीतीश की नकेल कसनी शुरू कर दी है. भाजपा के अब 21 मंत्री हो गए हैं, जबकि जेडीयू कोटे से सिर्फ 13 मंत्री हैं. कुल 36 मंत्रियों में दो पद निर्दलीय और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के पास हैं.
RJD को चाहिए 2015 जैसा पार्टनर
आरजेडी ने 2020 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़ा. लालू यादव तब चुनावी परिदश्य से बाहर थे. इसके बावजूद तेजस्वी यादव की अगुआई वाले महागठबंधन को खासा कामयाबी मिली. साथ-आठ विधायकों की कमी से तेजस्वी सीएम नहीं बन पाए. आरजेडी 2022 से 2024 के बीच के 17 महीने तक नीतीश के साथ सरकार में शामिल रही. तेजस्वी यादव ने 2020 में घोषणा की थी कि सरकार बनने पर पहली कैबिनेट बैठक में वे 10 लाख नौकरी की मंजूरी देंगे. मौका मिला तो नौकरी देने का सिलसिला शुरू भी हुआ. बड़े पैमाने पर शिक्षकों की नियुक्ति हुई. तेजस्वी इसे अपनी उपलब्धि बताते हैं. इस बार भी रोजगार और सरकारी नौकरी का वादा तेजस्वी के चुनावी एजेंडे में शामिल है. इसका लाभ उन्हें मिलना चाहिए. इसके बावजूद लालू, तेजस्वी या उनके परिवार और दल के नेताओं का मानना है कि पिछली चूक से बचने के लिए नीतीश कुमार जैसा पार्टनर रहे तो बेहतर होगा. यही वजह है कि नीतीश के बार-बार इनकार के बावजूद आरजेडी के नेता उनके लिए लार टपका रहे हैं.






