बीजेपी और नीतीश कुमार क्यों एक-दूसरे को आश्वस्त करने और बार बार भरोसा दिलाने में जुटे हैं, पढिये अमर नाथ पाण्डेय का बेबाक विश्लेषण में

अमर नाथ पाण्डेय

बिहार में कुछ भी ठीक नही चल रहा है। बीजेपी के नेता पिछले कुछ महीनों से लगातार कह रहे हैं कि बिहार में नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता हैं और उनके नेतृत्व में ही एनडीए बिहार विधानसभा चुनाव लड़ेगी। बिहार से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के कई नेता लगातार यह दोहरा रहे हैं कि नीतीश कुमार ही एनडीए के मुख्यमंत्री होंगे। जहां बीजेपी नीतीश कुमार को आश्वस्त करने में लगी है वहीं नीतीश कुमार भी बार बार यह कह रहे हैं कि अब वह एनडीए छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। लोकसभा चुनाव के वक्त भी नीतीश ने ये कहा था और नतीजों के बाद भी यह दोहराया था। कुछ दिन पहले फिर नीतीश कुमार ने कहा कि वे अब बीजेपी के साथ ही रहेंगे और पहले जो गलतियां हुईं वह अब नहीं होंगी।

बिहार की जनता दिग्भ्रमित हो रही है। अगर सब कुछ चल रहा है ठीक ठाक तो फिर बार बार सफाई की जरूरत क्यों पड़ रही है। सवाल लाजिमी है तो जवाब भी रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है। 

बिहार के सत्ता की धुरी बने नीतीश कुमार बार-बार कह रहे हैं कि अब वो एनडीए का साथ छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे. नीतीश कुमार ही नहीं जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के दूसरे नेता भी इस बात को दोहरा रहे हैं और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ मिलकर बिहार में मिलकर चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं. इतना ही नहीं दोनों ने आरजेडी पर आक्रामक रुख भी अपना रखा है.

वहीं, बीजेपी के नेता लगातार एक ही बात कह रहे हैं कि बिहार में नीतीश कुमार एनडीए के नेता हैं और उन्हीं की अगुवाई में 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. इस तरह बिहार से लेकर दिल्ली तक के बीजेपी नेता कह रहे हैं कि सत्ता में आने पर नीतीश कुमार ही सीएम होंगे. ऐसे में सवाल ये उठता है कि बीजेपी और नीतीश कुमार क्यों एक-दूसरे को आश्वस्त करने और बार बार भरोसा दिलाने में जुटे हैं.

क्या नीतीश पर भरोसा किया जा सकता

नीतीश कुमार कई बार सियासी पाला बदल चुके हैं, जिसके चलते वह कब किस तरफ सियासी करवट बदल लें, उस पर कुछ कहा नहीं जा सकता है. बिहार में साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. पिछले कई महीने से चर्चा है कि नीतीश कुमार बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. नीतीश चुनाव से ठीक पहले बीजेपी से गठबंधन तोड़कर आरजेडी के साथ हाथ मिला लेंगे. आरजेडी की ओर से भी नीतीश कुमार को महागठबंधन में आने का खुलेआम ऑफर दिया जा रहा है. इसके चलते ही नीतीश और जेडीयू को बीजेपी को विश्वास दिलाना पड़ रहा है.

नीतीश कुमार बीजेपी को भरोसा देने में जुटे हैं कि वो किसी भी सूरत में एनडीए का साथ छोड़कर नहीं जाएंगे. एनडीए के साथ रहते हुए बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में नीतीश कुमार यह भी बता रहे हैं कि आरजेडी के साथ जाना उनकी गलती थी, जो अब कभी नहीं करेंगे. 2025 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ेंगे. इस बात को नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता कई बार सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं.

भाजपा बार बार भरोसा क्यों दिला रही

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी को आश्वस्त करने में जुटे हैं तो बीजेपी भी उनका भरोसा बनाए रखने की कवायद में जुटी हुई है. बीजेपी सहित एनडीए में शामिल सभी घटक दलों ने खुले तौर पर कह दिया कि बिहार के 2025 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा होंगे. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक बयान के बाद यह कयास लगने लगे थे कि बिहार में एनडीए का चेहरा कौन होगा.

महाराष्ट्र चुनाव के बाद ही अमित शाह ने कहा था कि बिहार में अगला चुनाव किसके चेहरे पर लड़ा जाएगा, इसका फैसला बीजेपी और जेडीयू की बैठक में लिया जाएगा. इसके बाद जेडीयू के नेताओं ने मोर्चा खोल दिया है और साफ कहा था कि नीतीश कुमार ही एनडीए का चेहरा होंगे.

जेडीयू के सियासी तेवर को देखते हुए बीजेपी ने अपने सियासी स्टैंड को बदला. बिहार बीजेपी की कोर कमिटी मीटिंग फरीदाबाद में हुई थी, जिसमें बीजेपी की तरफ से इस संबंध में बयान जारी कर कहा गया कि नीतीश के अगुवाई में ही बीजेपी चुनाव लड़ेगी. बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता तो खुले तौर पर कह रहे हैं कि नीतीश कुमार ही एनडीए के सीएम चेहरा होंगे, चाहे किसी भी पार्टी की कितनी भी सीटें आएं, नीतीश ही सीएम होंगे. इसके अलावा बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में किसी तरह का कोई भी मतभेद नहीं है. सीट बंटवारे से लेकर चुनावी रणनीति तक सब कुछ पूर्व निर्धारित फॉर्मूले के तहत ही चलेगा.

नीतीश कुमार के चेहरे को लेकर सवाल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से ही उठ रहे हैं. महाराष्ट्र चुनाव के तक सत्ता की बागडोर एकनाथ शिंदे के हाथों में रही थी, लेकिन नतीजे आने के बाद सत्ता का समीकरण बदल गया. बीजेपी ने सीएम पद किसी सहयोगी दल को देने के बजाय अपने पास रखा.

बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस के सीएम और पूर्व सीएम एकनाथ शिंदे के डिप्टी सीएम बनने के बाद महाराष्ट्र और बिहार की तुलना होने लगी. इसके बाद ही आरजेडी के साथ ही इंडिया गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया कि बीजेपी नीतीश कुमार को अब सीएम नहीं बनाएगी.

शिवसेना (यूबीटी) के विधायक और उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे ने बयान दिया था कि जो हमारे साथ हुआ वो बिहार में नीतीश कुमार के साथ भी हो सकता है. उनकी भी सीट चली जाएगी और बीजेपी सत्ता प्राप्त कर लेगी. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी का यही सपना है कि हर रीजनल पार्टी को तोड़ा जाए और खत्म किया जाए. इसके बाद से बिहार में नीतीश कुमार के सियासी पाला बदलने के कयास लगाए जा रहे हैं, लेकिन साथ बने रहना का भी भरासा एक-दूसरे को दिया जा रहा है.

सियासी मजबूरी

बिहार की सियासत में जेडीयू और बीजेपी का साथ बने रहना, एक-दूसरे की मजबूरी है तो एक-दूसरे के लिए जरूरी भी है. बीजेपी किसी भी सूरत में नीतीश कुमार का साथ नहीं छोड़ना चाहती है. 2015 में अकेले चुनाव लड़कर बीजेपी अपनी सियासी थाह बिहार में नाप चुकी है. बीजेपी को पता है कि वह अकेले चुनाव लड़कर सूबे की सत्ता हासिल नहीं कर सकती. सत्ता में अगर बने रहना है तो उसके लिए नीतीश कुमार का साथ होना जरूरी है, क्योंकि नीतीश के सिवा कोई दूसरा दल नहीं है, जिसके साथ मिलकर सरकार बना ले.

आरजेडी और कांग्रेस के संग बीजेपी की दोस्ती नामुमकिन सी है. ऐसे में नीतीश कुमार ही ऐसे हैं कि जिनके साथ मिलकर सत्ता में बने रह सकते हैं. बीजेपी ने बिहार में जेडीयू के साथ रहकर सत्ता का स्वाद चखा है. इसके अलावा नीतीश कुमार एनडीए से बाहर होते हैं तो उसका असर केंद्र की मोदी सरकार पर भी पड़ेगा. जेडीयू के 12 सांसद हैं, जिनके समर्थन वापस लेने पर मोदी सरकार डगमगा सकती है. इसके अलावा नीतीश के साथ रहते हुए अति पिछड़े वर्ग के वोट को लेना बीजेपी के लिए आसान नहीं है.

बीजेपी के लिए नीतीश की जितनी जरूरत है, उतनी ही आवश्यकता बीजेपी की जेडीयू को भी

बीजेपी के लिए नीतीश की जितनी जरूरत है, उतनी ही आवश्यकता बीजेपी की जेडीयू को भी है. नीतीश कुमार इस बात को बखूबी तरीके से जानते हैं कि उनकी पार्टी के लोग किसके साथ ज्यादा तालमेल बनाकर रह सकते हैं. बिहार में जेडीयू की राजनीति आरजेडी और लालू प्रसाद यादव के विरोध में खड़ी हुई है. इसीलिए जेडीयू के लोग आरजेडी के तुलना में बीजेपी को ज्यादा बेहतर विकल्प मानते हैं.

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