
पटना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस समय लालू प्रसाद के लिए सियासी रणनीति की फील्डिंग कर रहे थे. नीतीश कुमार ने कुछ विधायकों का गुट लालू प्रसाद के लिए तैयार कर लिया और लालू प्रसाद को उन विधायकों का समर्थन भी मिला. पूरी रणनीति नीतीश कुमार की रही और उसी के तहत लालू प्रसाद को समर्थन मिला. कहा जाता है कि तब वीपी सिंह, लालू प्रसाद के फेवर में नहीं थे. तब नीतीश कुमार ने चंद्रशेखर को मनाया, जिससे लालू प्रसाद का पलड़ा भारी हो गया. देवीलाल के बाद चंद्रशेखर का समर्थन लालू यादव को मिला, जिसके बाद मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो चुका था. इसके बाद लालू प्रसाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. यही वजह है कि विधानसभा में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव से कहा कि तुम्हारे पिता को हमने ही बनाया था.

तुम्हारे पिता को हम ही सीएम बनाए थे, तुम्हारी जाति वाले भी आपत्ति कर रहे थे, कि काहे बना दिए… लालू यादव पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को खत्म कर खाली पिछड़ा वर्ग करने वाले थे, हमने इसका विरोध किया था, फिर हम अलग हो गए. ये बातें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव की ओर इशारा करते हुए तब कहीं जब मंगलवार को राज्यपाल के अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर वह बोल रहे थे. नीतीश कुमार ने ऐसा क्यों कहा…उनके इस बयान के बाद बिहार की सियासत में चर्चा शुरू हो गई कि क्या वाकई में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका लालू प्रसाद यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने में रही है? उस दौर की राजनीति के जानकार इसका जवाब जानते हैं, लेकिन वर्तमान समय में बहुत लोगों को संभवत यह पता नहीं है, कि उस दौर में हुआ क्या था. कैसे लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री बने थे? ऐसे में हम वह पूरी कहानी ले आए हैं जब लालू यादव और नीतीश कुमार का साथ परवान चढ़ा और अलगाव हुआ.
दरअसल, नीतीश कुमार और लालू यादव का साथ करीब 55 वर्षों का है. इन 55 वर्षों में राजनीति के उतार-चढ़ाव, सियासी रिश्तो में तल्खी और प्यार के बीच बड़े भाई- छोटे भाई के बीच मिठास और खटास की कई कहानियां हैं. बाद में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी इन दोनों नेताओं के बीच काफी रही है. बता दें कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का संबंध छात्र जीवन से रहा है. दोनों ही जेपी आंदोलन में अहम भागीदार और किरदार रहे हैं. कभी लालू प्रसाद के चाणक्य कहे जाते थे सीएम नीतीश कुमार. लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के रिश्ते की शुरुआत वर्ष 1973 के आसपास हुई थी. तब लालू प्रसाद पटना यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे तो नीतीश कुमार भी बिहार कॉलेज आफ इंजीनियरिंग में पढ़ने आए थे. दोनों में समान बात यह थी कि दोनों पॉलिटिक्स में दिलचस्पी थी. वर्ष 1973 में छात्र संघ का चुनाव था तब लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के साथ दूसरे छात्रों ने मिलकर छात्र संघर्ष समिति का गठन किया था. इसमें लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों थे. तब लालू प्रसाद की छात्र संगठन राम लखन सिंह यादव, नरेंद्र सिंह जैसे नेताओं से मुकाबला लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के छात्र संगठन से था.
ऐसे बढ़ता गया लालू-नीतीश का साथ
वर्ष 1973 में लालू प्रसाद छात्र संघ का चुनाव लड़ रहे थे और नीतीश कुमार उनके रणनीतिकार थे. नतीजा यह हुआ कि लालू प्रसाद यादव जीतकर छात्र संघ के अध्यक्ष बन गए. आपको बता दें कि यह वही छात्र संघर्ष समिति है जिसने छात्रों के मुद्दे पर इंदिरा गांधी की सरकार का विरोध किया था. इन्हीं छात्रों के गुट की अगुवाई में संपूर्ण क्रांति का आंदोलन बढ़ा और यही इंदिरा सरकार के खिलाफ हथियार बना. जेपी आंदोलन के बाद लालू यादव और नीतीश कुमार दोनों राजनीति में आ गए. वर्ष 1989 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में विपक्ष एकजुट हुआ, जिसका नतीजा हुआ कि 1989 में केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी.

लालू के लिए चाणक्य बन गए नीतीश
इसके बाद आया वर्ष 1990 का दौर और इसी वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस की करारी हार हुई और जनता दल में मुख्यमंत्री बनाने का गुणा-गणित शुरू हुआ. राजनीति के जानकार बताते हैं कि मुख्यमंत्री बनने की रेस में तीन नाम सबसे आगे थे. रामसुंदर दास, रघुनाथ झा और लालू प्रसाद. यही तीन नाम थे जिनके चेहरे पर मंथन था और तीनों नाम रेस में चल रहे थे. रामसुंदर दास को वीपी सिंह पसंद करते थे. रघुनाथ झा के समर्थन में चंद्रशेखर थे. लालू प्रसाद के नाम पर भी उनको कोई असहमति नहीं थी. राजनीति के जानकार कहते हैं कि यहीं पेंच फंसा हुआ था. यही वह समय था जब नीतीश कुमार लालू प्रसाद के लिए चाणक्य की भूमिका में आ गए थे. हालांकि, लालू प्रसाद यादव के फेवर में तब देवीलाल भी आ गए थे.
कहानी लालू यादव के सीएम बनने की
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस समय लालू प्रसाद के लिए सियासी रणनीति की फील्डिंग कर रहे थे. नीतीश कुमार ने कुछ विधायकों का गुट लालू प्रसाद के लिए तैयार कर लिया और लालू प्रसाद को उन विधायकों का समर्थन भी मिला. पूरी रणनीति नीतीश कुमार की रही और उसी के तहत लालू प्रसाद को समर्थन मिला. कहा जाता है कि तब वीपी सिंह, लालू प्रसाद के फेवर में नहीं थे. तब नीतीश कुमार ने चंद्रशेखर को मनाया, जिससे लालू प्रसाद का पलड़ा भारी हो गया. देवीलाल के बाद चंद्रशेखर का समर्थन लालू यादव को मिला, जिसके बाद मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो चुका था. इसके बाद लालू प्रसाद पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. यही वजह है कि विधानसभा में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव से कहा कि तुम्हारे पिता को हमने ही बनाया था.





