
संतोष राज
पटना
सहनी और प्रशांत किशोर के गठबंधन की अटकलें तेज हैं.
महागठबंधन में सीट बंटवारे पर असहमति बनी हुई है.
बिहार की सियासत में क्या कुछ नया होने वाला है? लालू यादव का एक बार फिर से आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है तो वहीं गठबंधन पर पेंच अभी भी फंसा हुआ है. विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी भी अचानक लाइम लाइट से दूर चले गए हैं. हर वक्त तेजस्वी यादव के साथ रहने वाले मुकेश सहनी हाल के दिनों में कम मौकों पर ही तेजस्वी यादव के साथ नजर आए हैं. तेजस्वी यादव की सीट शेयरिंग पर मुकेश सहनी से बात नहीं बन रही है. दोनों आखिरी बार 12 जून 2025 को पटना में महागठबंधन की बैठक में एक साथ नजर आए थे, जहां 2025 विधानसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे पर चर्चा हुई. इस बैठक में सहनी ने 60 सीटों की मांग रखकर सबको चौंका दिया, जिससे तेजस्वी के साथ उनके रिश्तों में तनाव की खबरें उड़ीं. इस बीच खबर आ रही है कि जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर और मुकेश सहनी में अंदरखाने चर्चा शुरू हो गई है?
मुकेश सहनी पर किस-किस की नजर है
बता दें कि मुकेश सहनी निषाद (मल्लाह) समुदाय के प्रभावशाली नेता के तौर पर हाल के वर्षों में उभरे हैं.बीते कुछ दिनों से सहनी महागठबंधन में अपनी पार्टी की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए आक्रामक रुख अपनाया है. अप्रैल 2025 में एक साक्षात्कार में उन्होंने 60 सीटों का दावा ठोका और कहा कि उनकी पार्टी 150 से ज्यादा सीटों पर असर डाल सकती है. यह मांग आरजेडी के लिए असहज थी, क्योंकि कांग्रेस 70 और सीपीआई(एमएल) 45 सीटें पहले से ही मांग रही है. 13 जून की बैठक में सहनी ने तेजस्वी के सामने यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया, जिसके बाद सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनी.
मुकेश सहनी क्या छोड़ेंगे आरजेडी का साथ?
सूत्रों का कहना है कि सहनी की महत्वाकांक्षा और तेजस्वी का गठबंधन में नियंत्रण बनाए रखने का प्रयास इस तनाव की जड़ है. हालांकि, दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से विवाद की बात से इनकार किया है. इस बीच, सहनी के प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के साथ गठबंधन की अटकलें तेज हो गईं. हालांकि, 2020 में सहनी ने पीके से मुलाकात की थी, जब उन्होंने बिहार में तीसरे मोर्चे की कोशिश की थी. हाल में, 16 अप्रैल 2025 को एक एक्स पोस्ट में दावा किया गया कि सहनी ने बीजेपी अध्यक्ष के साथ गुप्त मुलाकात की, जिससे उनके महागठबंधन छोड़ने की संभावना जताई गई.
क्या पीके और तेजस्वी में मुलाकात हुई?
हालांकि, पीके और सहनी के बीच कोई पक्का गठबंधन सामने नहीं आया है. लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि सहनी अपनी सियासी कीमत बढ़ाने के लिए पीके और बीजेपी जैसे विकल्पों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसा उन्होंने 2020 में महागठबंधन छोड़कर एनडीए जॉइन करने से पहले किया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में सहनी की वीआईपी को आरजेडी ने अपने कोटे से तीन सीटें गोपालगंज, मोतिहारी, झंझारपुर दी थीं, लेकिन कोई जीत नहीं मिली. यह सहनी के लिए झटका था, जिसके बाद उन्होंने विधानसभा चुनावों में ज्यादा हिस्सेदारी की मांग शुरू की. तेजस्वी के सामने सहनी की बढ़ती मांग और पीके संग उनकी संभावित नजदीकी 2025 के चुनावों से पहले महागठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर रही है. ऐसे में बिहार की सियासत में सहनी का अगला कदम क्या होगा, यह देखना बाकी है.