
आध्यात्मिक गुरु पंडित कमला पति त्रिपाठी
पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन होता है। इस बार 13 मार्च गुरुवार को होलिका दहन है। ये खास पर्व बुराई की अच्छाई पर जीत के तौर पर मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंगों के त्योहार यानी होली को मनाया जाता है। धर्म की अच्छी खासी जानकारी रखने वाले आध्यात्मिक गुरु पंडित कमला पति त्रिपाठी ने होलिका दहन की कथा बताई है। साथ ही उन्होंने पूजा विधि और उपाय के बारे में भी बात की है। आइए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, कथा और उपाय जानते हैं।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
13 मार्च, गुरुवार को छोटी होली है और होलिका दहन से पहले पूजा करने का विधान है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद होलिका दहन करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि व्याप्त होने के बाद होलिका दहन करना चाहिए। शुभ मुहूर्त (Holika Dahan Shubh Muhurat) की बात करें तो 13 मार्च को रात 11 बजकर 26 मिनट से देर रात 12 बजकर 30 मिनट तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रहेगा।
होलिका दहन की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप जो स्वयं को ही भगवान मानता था। अपनी प्रजा को कहता था कि वह उसकी पूजा करें और उसे ही भगवान माने। विष्णु को भगवान ना माने और उनकी पूजा न करने के लिए भी कहते थे। हालांकि, हिरण्यकश्यप के पुत्र पहलाद विष्णु भक्त थे और नारायण की भक्ति में लीन रहता थे। राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को नारायण भक्ति करने से रोका और उसे मृत्युतुल्य कष्ट दिया। वो होलाष्टक का ही समय था और पूर्णिमा के दिन राजा ने अपने पुत्र प्रहलाद को अपनी बहन होलिका जिसे यह वरदान था कि उन्हें आग में नहीं जलाया जा सकता है।
बहन होलिका के साथ लकड़ियों के गट्ठर में अग्नि जला प्रहलाद को बैठा दिया जाता है लेकिन भगवान नारायण ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की और उसे जीवनदान दिया। कभी भी आग से हानि न पहुंचाने वाली होलिका, उस अग्नि में जलकर भस्म हो गई तभी से होली का त्योहार मनाया जाता है और रंग के त्योहार से पहले का दिन होलिका दहन कहलाता है। दूसरे दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रहलाद की जीत के उपलक्ष्य में उत्सव मनाया जाता है। रंग गुलाल और अबीर से होली खेल कर खुशियां मनाई जाती है।
होलिका दहन की पूजा
होलिका दहन के लिए किसी पेड़ की शाखा को जमीन में गाड़कर उसके चारों तरफ लकड़ी और खंडेरा डाली जाती है। सारी चीजों को शुभ मुहूर्त में जलाया जाता है। होलिका दहन में छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां और उबटन से नहाकर उसके मेल वाले उबटन को भी डाला जाता है। ऐसी मान्यता है कि इससे साल भर व्यक्ति को आरोग्य की प्राप्ति होती है। सारे घर का कूड़ा-कबाड़ा पुरानी झाड़ू भी अग्नि में स्वाहा कर दी जाती है। कई स्थानों पर होलिका की पूजा की जाती है। होलिका दहन पर लकड़ी की राख को घर पर लाने और उसका तिलक करने की भी परंपरा है।
होली के दिन पूर्णिमा होती है इसलिए इस दिन पूरे घर के लोगों के साथ चंद्रमा का दर्शन भी करना चाहिए चंद्रमा को अर्घ देना चाहिए होलिका दहन पर होलिका के साथ परिक्रमा करके उसमें मिठाई, उपले, इलायची, लौंग और अनाज डाले जाते हैं। परिवार के सुख समृद्धि की कामना की जाती है। इसके साथ ही कई प्रदेशों में होली जलकर उसकी लकड़ियां जिस दिशा में गिरती है तो आने वाला वर्ष कैसा रहेगा इसका भी अनुमान लगाया जाता है।
होलिका दहन के उपाय
अगर मनोकामना पूर्ति के लिए उपाय करना चाहते हैं तो होलिका दहन के दौरान हाथ में 3 गोमती चक्र लें और अपनी इच्छा को मन में बोलकर गोमती चक्र को अग्नि में डाल दीजिए।
होलिका दहन को प्रणाम करें और सात बार चक्र लगाते हुए ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप भी करते रहें। इससे भगवान विष्णु की खास कृपा प्राप्त कर सकेंगे।
वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाए रखने के लिए राधा-कृष्ण की पूजा-अर्चना जरूर करें और अबीर अर्पित करें।
होलिका दहन की तिथि और मुहूर्त
इस साल फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से प्रारंभ हो जाएगी और 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर इसका समापन होगा. चूंकि छोटी होली पर दिनभर भद्रा का साया रहेगा. इसलिए रात को 11.26 बजे भद्रा समाप्त होने के बाद ही आप होलिका दहन कर सकेंगे.







